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ऐन वक्त पर एसडीएम ने रोका अपना आदेश, वर्ना जेल में होती 4 महिलाएं

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*इंदौर:-बाबा यादव*
पुलिस का चेहरा सामुदायिक बनाने के प्रयास अफसर तो करते है और सामुदायिक पुलिस के लिए कई आयोजन भी होते है लेकिन पुलिस है कि अपनी आदतों से बाज नहीं आती है। मामूली घरेलु विवादों का ेजहां  समझाईश देकर खत्म करना चाहिए वहां सभी को गुण्डा लिस्ट में शामिल कर एसडीएम क ोर्ट में पेश कर दिया जाता है। एसडीएम भी पुलिस रिपोर्ट के आधार पर सभी को जेल वारंट काट देते है । बुधवार को कुछ ऐसा ही हुआ मगर कानूनी पक्ष सामने आने के बाद एसडीएम ने  चार महिलाओं सहित  दो पुरूषों को जेल भेजने के बजाय बांड भरवारकर छोड़ दिया।
मामला कुछ यूं था कि संविद नगर निवासी कीर्तिकुमार वर्मा ने निशा वर्मा के साथ प्रेम विवाह कर लिया था जिससे उसके परिजन नाराज थे। कीर्ति को घर से अलग कर दिया और वह एक ही मकान में अलग कमरे में रहता था। प्रेम विवाह करने के कारण कीर्ति के पिता हरिप्रसाद वर्मा, मां राजकुमारी भाई ऋतुराज बहन भारती और कीर्तिबाला से चाहे जब विवाद होने लगे थे। परिवार से पीड़ित कीर्तिकुमार ने पुलिस थाना पलासिया पर तीन चार शिकायते की मगर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। हाल ही में कीर्ति के वाहन में परिजनों ने तोडफोड कर दी तो वह थाने पर फिर शिकायत करने पहुंचा तो उसे और उसके परिवार को पुलिस ने प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करते हुए एसडीएम कोर्ट में पेश कर दिया।
पुलिस ने जब पूरे परिवार को एसडीएम शालिनी श्रीवास्वत के समक्ष पेश किया तो उन्होने सीधे 4 महिलाओं सहित दोनों भाईयों को जेल भेजने के मौखिक आदेश दे दिए थे। एसडीएम का आदेश लिखा जाता उसके पहले पूरे परिवार ने पुलिस की कार्रवाई की हकीकत बयां की इसके बाद जाकर कानूनी पक्ष देखा गया और एसडीएम ने शालिनी श्रीवास्वत ने चारों महिलाआेंं और दोनों भाईयों को जेल भेजने के बजाय बांड भरवाया और छोड दिया।
पुलिस की कार्रवाई से हम दुखी है
लव मैरिज करने के बाद परिवार की नाराजगी थी जिसे मै पुलिस की मदद से खत्म करना चाहता था मगर पुलिस ने हमे गुण्डा बनाकर खासकर महिलाओं को गुण्डों की तरह कार्रवाई कर एसडीएम कोर्ट में पेश करना ठीक नहीं था। मै और मेरी पत्नी सहित परिवार के अन्य सदस्य कोई अपराधी नहीं है। यहां पर सामुदायिक पुलिस की भूमिका होना थी मगर ऐसा नहीं हुआ। खैर समय पर एसडीएम ने अपना निर्णय बदला वर्ना जीवन में जेल जाने का कंलक लग जाता। *कीर्ति कुमार वर्मा, पीड़ित*

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