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*वर्तमान भारत के निर्माण में बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी की प्रासंगिकता*

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*वर्तमान भारत के निर्माण में बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी की प्रासंगिकता*

*श्योपुर:-खेमराज आर्य*

डॉ भीमराव अम्बेडकर का मूल्यांकन और आंकलन हमेशा ही एकपक्षीय नजरिये से कि वो दलितों के नेता है या उन्होंने सब कार्य इन वर्गों के उत्थान के लिए ही किये थे ऐसे दृष्टिकोण से किया जाता रहा है और आज भी हो रहा है. उन्होंने प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिए काम किया जो शोषित और पीड़ित था और आज भी है चाहे वो किसी भी वर्ग, जाति, समुदाय का हो.  उन्होंने भेदभाव, असमानता, अस्पृश्यता, अंधविश्वासों, कर्मकाण्डों, जातिवाद, वर्ण व्यवस्था, ऊंच नीच का संस्करण आदि को स्थापित करने वाली सभी व्यवस्थाओं का निडरता, निर्भयता, दृढ़ता के साथ निरंतर विरोध किया था और भारतीय संविधान (26 जनवरी 1950 ) में समता, स्वतंत्रता, सभी को विकास के समान अवसर की उपलब्धता, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनैतिक न्याय की व्यवस्था को शामिल करवाने के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयासों को अगर कोई भी भारतीय विस्मृत करता है तो वो उनके वर्तमान भारत के निर्माण में उनके योगदान से अनभिज्ञ और अज्ञात है ऐसे भारतीय नागरिकों को उनके विषय में बहुत ही अधिक गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है
आज जो वातावरण दिखाई दे रहा है जिसमें बिना भाषा, क्षेत्र, जाति, धर्म, लिंग, नस्ल के सभी को समता और स्वतंत्रता के साथ अपनी योग्यता के अनुसार विकास के रास्ते पर चलने का अधिकार प्राप्त हैं उसके लिए उनका योगदान स्मरणीय है उन्होंने स्त्रियों, मजदूरों, किसानों, सफाईकर्मियों आदि के वेतन, पेंशन, अवकाश, काम के समय का निर्धारण तो करवाया ही साथ ही इन सभी के लिए एक ऐसे वातावरण की आधारशिला भी रखी कि ये सभी अपने अपने क्षेत्रों में भारत के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा भी कर रहे हैं
उन्होंने स्वयं अस्पृश्यता और जातिवाद के दंश को अपनी बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और प्रोढ़ावस्था तक सहन किया था कदम कदम पर जिन अपमान, तिरस्कार, घृणा, नफ़रत, चुनौतियों को अपनी निम्न जाति के कारण झेला और साहा वो नहीं चाहते थे कि जब भारत स्वतंत्र हो जाये और स्वतंत्र भारत के नागरिकों में किसी भी प्रकार की असमानता, नफ़रत, द्वेष, घृणा और ऊंच-नीच आदि की भावनाओं का सामना करना पड़े प्रत्येक भारतीय नागरिक सिर्फ और सिर्फ भारत के विकास के बारे में सोचें अपनी संकीर्ण सोच, रूढ़िवादी मान्यताओं, जड़ता की निशानी विभेदकारी अंधविश्वासों और जातिवादी विचारों का परित्याग करके एक नयें भारत की नींव रखें जहाँ सभी जल, थल और नभ में स्वतंत्रता के साथ एक नये युग की शुरुआत करें जहाँ किसी भी प्रकार की अमानवीयता वाली विचारधारा न हो
वर्तमान भारत के निर्माण में उनकी प्रासंगिकता शिक्षा, स्वास्थ्य, सेना, सामाजिक संरचना, भारतीय अर्थव्यवस्था, महिला सशक्तिकरण आदि क्षेत्रों में  आये परिवर्तनों में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है
यदि अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और महिलाओं के लिए उनकी भूमिका को तो कोई भी व्यक्ति अनदेखा नहीं कर सकता है और न ही मानने से इंकार कर सकता है इसके साथ ही भारत की प्रत्येक महिला के लिए उनके द्वारा किए गए कार्य उनको भारत की प्रत्येक महिला  की स्वतंत्रता और समता का जनक कहलाने की क्षमता भी रखते हैं शायद ही इसे कोई अस्वीकार कर पाये सामान्य वर्ग के वो पुरुष ( परिवार) जो अपनी दयनीय कमजोर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्थिति के कारण पहले से ही प्रभावशाली और वर्चस्वशाली  वर्ग के कारण  सम्मानित जीवन जीने से सदियों से वंचित थे डॉ अम्बेडकर ने भारतीय संविधान द्वारा उनको भी समता, स्वतंत्रता का अवसर दिलवाकर अपनी योग्यता के द्वारा विकास के द्वार को उनके लिए भी खुलवाया था
अत: डॉ भीमराव अम्बेडकर को किसी एक वर्ग का नेता या महापुरुष घोषित करना उनके द्वारा भारत के प्रत्येक नागरिक के विकास के लिए किए गए कार्य के साथ अन्याय हैं हमें हमेशा उनके किए गए कार्यों और प्रयासों को समग्रता के साथ  देखने की भावना विकसित करनी चाहिए तभी उनका निष्पक्षता और तटस्थता के साथ मूल्यांकन करना संभव होगा

        खेमराज आर्य
सहायक प्राध्यापक इतिहास
शासकीय आदर्श कन्या महाविद्यालय श्योपुर मध्यप्रदेश

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