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ओर कितना समय लेगी सरकार प्रोफेसरो को नियुक्ति देने में क्यो नही दे रहे जॉइनिंग चन्द लोग भटका रहे है। कहानी प्रोफेसरो की जुबानी

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*इन्दौर:-संजय यादव बाबा*
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा सफलतापूर्वक आयोजित की गई ऐतिहासिक सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा पर हाल ही में जिस तरह के गैर प्रमाणित संगीन और अभद्र आरोप लगाए गए हैं वे निंदापूर्ण एवं चिंताजनक हैं। दो दशकों के अंतराल के बाद ये एक ऐसा महायज्ञ था जो मध्य प्रदेश राज्य में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा और इसका श्रेय माननीय मुख्य मंत्री जी, माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी, उच्च शिक्षा विभाग एवं एम.पी.पी.एससी के सभी पदाधिकारी एवं सम्बंधित कमचारियों की अद्वितीय
कार्यकुशलता एवं तत्परता को जाता । लेकिन जिस तरह से कुछ लोगों विशेषकर परीक्षा विरोधी एवं असफल लोग, द्वारा दूषित और विशैली बातें कही गयी हैं उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि ये लोग विद्वान् कहलाने और अध्यापन कार्य के लिए कतई योग्य नहीं हैं ये अपने आप में अभूतपूर्व है की 41 विषयों के लगभग 3422 पदों के लिए आयोजित की गई सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा
में से 37 पदों की अंतिम चयन सूची 3 महीने से भी कम समय में राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा प्रकाशित कर दी गई है प्रक्रिया की गति को देखकर उम्मीद है की जल्द ही उच्च शिक्षा विभाग की तरफ से विभिन्न महाविद्यालयों में नियुक्तियां भी पूर्ण हो जाएंगी जो भी उम्मीदवार इस परीक्षा में असफल रहे या जो भी अतिथि विद्वान् इस परीक्षा को रद्द करवाने के लिए प्रारम्भ से ही कटिबद्ध रहे उन्हें ये समझना चाहिए की आयोग और उच्च शिक्षा विभाग पर फर्जीवाड़े के झूठे आरोप लगाना उनकी अपनी गरिमा और अस्मिता के पतन का परिचायक है। इनमें से कई लोग तो ऐसे हैं जो पहले आयोग और उच्च शिक्षा विभाग के समक्ष यह भर्ती परीक्षा आयोजित करवाने के लिए आवेदन और धरने देते रहे और अब जबकि इनका चयन नहीं हो सका तो आयोग और उच्च शिक्षा विभाग पर ही अपनी असफलता
का ज़िम्मा देना चाहते हैं। एक सच्चा प्रतियोगी हार और जीत दोनों को गरिमामय तरीके से स्वीकारता है, ना कि इस तरह से कीचड़ राज्य लोक सेवा आयोग ने अर्थशास्त्र विषय की संशोधित चयन सूची उसी दिन जारी कर दी थी जिस दिन आयोग को मूल
चयन सूची में त्रुटी की जानकारी प्राप्त हुई त्रुटियाँ होना एक मानवीय और स्वाभाविक घटना है लेकिन उन्हें यथाशीघ्र सुधारा जाना किसी संस्था या व्यक्ति की नैतिकता का द्योतक हैसिर्फ त्रुटियाँ होने भर से आयोग पर लगाए गए ये आरोप की आयोग ने भ्रष्टाचार किया या अपारदर्शी तरीके से कार्य कियाये बहुत ही शर्म की बात हैकुछ लोग तो आयोग के वरिष्ठ पदाधिकारियों के विरुद्ध एफ.आईआर दर्ज
कराने जैसी बातें भी कर रहे हैं। समाचार पत्रों तथा सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई जा रही इस तरह की ख़बरों में इन असफल एवं परीक्षा विरोधी लोगों द्वारा अपनी असफलता की घिनौनी नुमाइश के अलावा कुछ भी निहित नहीं है अगर आयोग पारदर्शी नही होता तो हर विषय की परीक्षा के बाद उसी दिन ही प्रत्येक उम्मीदवार के द्वारा अंकित किये गए उत्तर की पी.डी.एफ कॉपी एवं प्रश्नों की प्रावधिक
उत्तर कुंजी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित न करता आयोग ने हर विषय की उत्तर कुंजी पर आपत्तियाँ भी आमंत्रित की तथा उचित पाए जाने पर यथास्थान संशोधन भी कियाजिसके पश्चात अंतिम उत्तर कुंजियाँ जारी हुई।
आयोग की वेबसाइट पर एक विज्ञप्ति के माध्यम से ये भी कहा गया है की विषयवार कट-ऑफ की जानकारी भी शीघ्र ही दे दी।
जायेगीसहायक प्राध्यापक परीक्षा के किसी भी स्तर पर भारत सरकार या राज्य सरकार के नियमों या संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन करने जैसी कोई भी घटना नहीं हुईएकमात्र टी को एक ही दिन में सुधार दिया गया इस सबके उपरान्त भी यदि उच्च शिक्षा विभाग और राज्य लोक सेवा आयोग पर कुछ लोग भद्दे और आधारहीन आरोप लगाते हैं तो ये ना केवल शर्मनाक है बल्कि कानूनी तौर पर दंडनीय भी है। इस लेख के माध्यम से राज्य शासन एवं लोक सेवा आयोग से विनती है की इस तरह की झूठी ख़बरों के विरुद्ध यथानियम कठोर कदम उठाए जाएं ताकि शासन एवं प्रशासन की पारदर्शिता एवं गरिमा पर किसी को भी व्यर्थ का संदेह ना हो , उच्च शिक्षा विभाग से यह भी विनती है की जिन विषयों की अंतिम अनुशंसाएँ विभाग को प्राप्त हो गयी हैं उनमें नियुक्ति की प्रक्रिया भी यथाशीघ्र आरम्भ की जाए जिससे इसी सत्र से सभी चयनित उम्मीदवार पूरी गंभीरता से अध्यापन का कार्य आरम्भ कर सकें।

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