*शेरसिंह जैसा नाम वैसा कर दिया काम बॉर्डर पर 1971 की जंग लड़ कर देशप्रेम दिखाया और रिटायर होने पर जन सेवा*
*छोटे ने वो जनसेवा कर दि जिसे बड़ो ने व्यापार बना रखा है 200 से ज्यादा परिवारों का खिल उठा चेहरा*
*इंदौर:-*संजय यादव बाबा-9926010420*
अभिभावकों और निजी स्कूलों का घमासान किसी से छुपा नहीं है। हर वर्ष मार्च-अप्रैल में स्कूलों की मनमानी का शिकार होते नजर आ रहे हैं अभिभावक पिछले दो दशकों से इनकी शुध लेने वाला कोई नही है। वन्ही इस वर्ष कोरोना ने कई लोगो की कमर तोड़ दी है ऐसे में शहर के खण्डवारोड स्थित गुरुशरण पब्लिक स्कूल ने 200 से ज्यादा पालको के चेहरे पे मुस्कान बिखेर दी है इस स्कूल ने 3 माह की फीस माफ् कर तमाम छोटे बड़े स्कुलो को लताड़ दिया है और इस स्कूल के संचालक व उनके पिता की दरियादिली भी देखिए कि कहते है स्कूल शिक्षा व सेवा के लिए होते है व्यापार के लिए नही जब नाम और दिल से भी शेरसिंह रानू जो कि फौज से रिटायर मेजर है शेरसिंह रानू ने 1971 की जंग लड़ी… सरहद पर तो देश-प्रेम दिखाते हुए जंग लड़ी वन्ही रिटायर होने के बाद भी वे भलाई के मामले में पीछे नहीं हटे फिर चाहे नुकसान ही क्यों न हो जाए उन्होंने यही जज्बा अपने बेटे के स्कूल को लेकर दिखाया। उनके बेटे योगेश्वरसिंह रानू का लिंबोदी में गुरु शरण पब्लिक स्कूल है, जहां केजी-1 से आठवीं तक के बच्चे पढ़ते हैं। कोरोना आपदा के दौर में फीस माफी की बात उठी, तो उन्होंने बेटे से कहा कि गुरुशरण पब्लिक स्कूल सेवा के लिए है, व्यापार के लिए नहीं। इसलिए फायदे नुक्सान की फिक्र किए बगेर कर दी 3 महीने की फीस माफ् जिसको देखते हुए इसी लिम्बोदी ग्राम में और 2 से 3 छोटे स्कूल संचालक भी अपने स्कूल की फीस माफ् करने की योजना बना रहे है।
लेकिन छोटे मंझले स्कूल तो बड़ा दिल रख फीस माफ् कर रहे है लेकिन जिन बड़े स्कुलो ने शिक्षा को व्यापार बना रखा है वो यह कदम उठाने में कोसो दूर दिखाई दे रहे है ऐसे में क्या कर रही है सरकार पिछले 2 दशकों से अभिभावकों की सुध लेने वाला कोई नहीं क्योंकि कहीं ना कहीं बड़े-बड़े स्कूल नेताओं व बड़े कारपोरेट घराने के हैं जिनके ऊपर उंगली उठाना ना तो शासन-प्रशासन के बस की बात है नही आमतौर पर समय-समय पर शासन प्रशासन द्वारा नियम बनाए जाते हैं लेकिन वह नियम केवल कागजी कार्यवाही तक सीमित रह जाते हैं मनमाने ऊंचे पब्लिशर की किताबें हो या बच्चों की स्कूल की ड्रेस जिसमें मोजे से लेकर शर्ट की बटन तक पर स्कूलों के नाम लिखे रहते हैं लेकिन ना जाने किसके दबाव में शासन प्रशासन उन पर कार्यवाही नहीं कर पाते लेकिन हद तो तब हो गई जब विश्वव्यापी कोरोना समस्या से आम आदमी अपना जोड़ तोड़ के घर चला रहा है उसी बीच व्यवसायिक गतिविधि चलाने वाले निजी स्कूल अभिभावकों को ठगने के लिए तैयार बैठे हैं लगभग दो दशक से करोड़ों रुपए कमा कर बैठे लेकिन 4 माह की अपने शिक्षकों को वेतन नहीं दे सकते और उन अभिभावकों पर दबाव बना रहे हैं जिनके बच्चों को उन्हें शिक्षा दी ही नहीं उन अभिभावकों पर दबाव बना रहे हैं जिन अभिभावकों के बच्चे स्कूल में पढ़ने गए ही नहीं अब सरकार को देखना है कि क्या वह अभिभावकों के हित में फैसला लेती है निजी व्यवसाय गतिविधि चलाने वाले विद्यालयों पर कार्यवाही करती है अगर ऐसा करती है तो अभिभावकों को लगेगा कि उनके खैर खैरियत पूछने वाला भी कोई मामा है जो बच्चों को अच्छी शिक्षा सस्ती शिक्षा दिला सके।