*“नागपंचमी: नाग आराधना प्रतीक”*
*इंदौर:- डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*
“`श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है विशिष्ट, नाग पूजन से नागदंश के भय का टलता है अनिष्ट।
नागों की पूजा का प्राचीन काल से ही है भारत में विधान, नाग देवता करते जीवन से अनेक कष्टों का निदान।
कालसर्प दोष के निवारण की पूजा होती इस दिन, अन्यथा यह देता जीवन में अनेक प्रकार के विघ्न।
नाग कहलाते पाताल लोक के स्वामी, बिना छेड़े नहीं करते किसी भी प्रकार की हानि।
नाग की आकृति बनाने की है इस दिन प्रथा, नाग करते गुप्त धन की रक्षा ऐसा कहती अनेक कथा।
धान, खील, दूर्वा, गोबर एवं दूध करते अर्पित, पुराणों में वासुकी, तक्षक, शेषनाग का पूजन है वर्णित।
राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म का मिला था श्राप, तब नागों ने ब्रह्माजी से की प्रार्थना अब इसका समाधान करों आप।
तब आस्तिक मुनि ने पंचमी के दिन नागों को दहन से था बचाया, वहीं से नाग पूजन का यह दिन प्रचलन में आया।
नाग हमेशा से है ईश लीला में सहायक, वासुकी नाग ने भी समुद्र मंथन में योगदान दिया था प्रभावदायक।
शिव धारण करते गले में नाग की माला, पालनकर्ता विष्णु ने भी शेषनाग को शैय्या का स्थान दे डाला।
नाग पंचमी के दिन करे दूध से नाग देवता की प्रतिमा का स्नान, नागों की रक्षा का डॉ. रीना रवि मालपानी करती आह्वान।“`
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*