*इन्दौर:-संजय यादव बाबा*
लोकायुक्त इन्दौर द्वारा पकडे गये नगर निगम इन्दौर मे बेलदार पद पर पदस्थ असलम खान मध्यप्रदेश शासन के जनसम्पर्क विभाग की ओर जारी शासकीय कार्ड के अनुसार जिला स्तरीय अधिमान्य पत्रकार है।यह पहला मामला नही जब अपात्र लोगो के अधिमान्यता कार्ड बने हो इसके पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए जब बिल्डर्स, उद्योगपति प्रोपर्टी ब्रोकर, के कार्ड भी बने है । सवाल यह है कि फिर जो वर्किंग जर्नलिस्ट है उनके कार्ड बनाने में क्यों इतने कानून आ जाते है।
*इस पर साथी पत्रकार बजरंग कचोलिया की कलम से*
*बेलदार “अधिमान्य पत्रकार” और पत्रकार बेअसरदार…*
_जनसंपर्क कार्यालय में किस कदर चमचागिरी और मनमानी हावी है इसका जीता जागता सबूत है इंदौर नगर निगम का अदना सा बेलदार मो असलम…_ जो कि करोड़ों की बेनामी संपत्ति का मालिक निकला। यहां तक तो ठीक…_शर्म की बात तो ये है कि उसके पास जनसंपर्क कार्यालय से जारी अधिमान्य पत्रकार का कार्ड भी मिला। पहली बात तो ये है कि ये कार्ड कई जमीनी पत्रकारों के पास भी नहीं होता जो दिन रात फील्ड में दौड़ते रहते है और जान जोखिम में डालकर दंगे या उत्पात की जगह भी रिपोर्टिंग करते मिलते है क्योंकि इसे बनबाने में कई औपचारिकता पूरी करनी होती है जो आसान नही होती। आश्चर्य की बात है कि एक बेलदार को पुलिस ने भी कैसे वेरिफाई कर दिया (जबकि कार्ड बनने के पहले थाने द्वारा ऐसे बन्दे का चरित्र सत्यापन होता है) और कैसे किसी समाचार पत्र का प्रतिनिधि का दर्जा मिल गया? कार्ड जारी करनेवाले जनसंपर्क के अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाना चाहिए। कल को तो सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद असलम जैसे लोग पत्रकारों को मिलनेवाली श्रद्धानिधि का लाभ भी लेने लगेंगे। जमीनी पत्रकार तो आज भी बेकार्डधारी है कल भी रहेंगा और तमाम लाभ ऐसे “अधिमान्य पत्रकार” लेते रहेंगे
आखिर पत्रकारों के हितों की रक्षा करनेवाली संस्थाएं कब इस तरह के मामलों में आक्रामक रुख अपनाएंगी?
सिर्फ प्राण निकल जाने पर ही मौत नही होती….वो भी मरा हुआ है जो अपने अधिकारो को खत्म होते खामोशी से देख रहा है……