*मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा अर्जित विश्व कीर्तिमान में विभिन्न राज्यों का योगदान*
*संजय यादव 9926010420*
वर्ष 2020 के जनवरी माह का 11वां दिन, दोपहर के 2.25 बजे का समय और प्रगति मैदान, दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेला में लेखक मंच पर वरिष्ठ पत्रकार डॉ.वेद प्रताप वैदिक, वरिष्ठ कवि डॉ. कुँवर बैचैन, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र शर्मा, वरिष्ठ कवि एवं बाल साहित्यकार डॉ. दिविक रमेश, पतंजलि योगप्रचारक प्रकल्प के प्रमुख स्वामी विदेह देव जी, लंदन से पधारे डॉ दिवाकर शुकल, साउथ एशियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर जनरल व वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स के अध्यक्ष संतोष शुक्ला, वरिष्ठ कवि प्रो. राजीव शर्मा क़ानूनविद शांतनु शुकल के आतिथ्य में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रतिबद्धता से आंदोलन का सूत्रपात करने वाले *मातृभाषा उन्नयन संस्थान* को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, लंदन द्वारा 11 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिंदी में परिवर्तित करवाने के लिए विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया, जिसे संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ सहित राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. नीना जोशी, राष्ट्रीय महासचिव कमलेश कमल, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शिखा जैन, राष्ट्रीय सचिव गणतंत्र ओजस्वी, कार्यकारिणी सदस्य अंजलि वैद
व रिंकल शर्मा, जलज व्यास, नरेंद्रपाल जैन आदि ने ग्रहण किया।
इस कीर्तिमान के बनने में सबसे ज्यादा योगदान उन सभी समर्पित हिंदी योद्धाओं का रहा जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में हिंदी की अलख जगाई और लोगों को हिंदी में हस्ताक्षर बदलने के लिए प्रेरित किया।
*विश्व कीर्तिमान की कुछ ख़ास बातें*
✍🏻 अभियान का आरंभ 21 फरवरी 2017 से हुआ, किन्तु प्रयासों में गति 2018 व 2019 में आई।
✍🏻 कुल 11 लाख 41 हजार लोगों के हस्ताक्षर हिंदी में परिवर्तित हुए।
✍🏻 26 राज्यों के लोग है सम्मिलित।
✍🏻 1500 से ज्यादा सक्रिय कार्यकर्ताओं की मेहनत है इसमें।
✍🏻 सबसे अधिक मध्यप्रदेश में 250000 लोगों ने बदले अपने हस्ताक्षर।
✍🏻 सबसे कम मेघालय और पॉन्डिचेरी में बदले हस्ताक्षर।
✍🏻 16 राज्य ऐसे भी शामिल है इस कीर्तिमान में जो हिन्दी भाषी राज्यों की सूची में नहीं है।
*किस राज्य का कितना योगदान*
मध्यप्रदेश- 250000
उत्तरप्रदेश – 245000
राजस्थान- 150000
बिहार- 65000
छत्तीसगढ़- 56000
हरियाणा- 55000
दिल्ली- 47000
गुजरात- 45000
महाराष्ट्र- 42000
उत्तराखंड – 38000
झारखंड- 34000
जम्मू-कश्मीर- 25000
पंजाब- 25000
तमिलनाडु- 15000
कर्नाटक- 10000
उड़ीसा- 9000
असम- 7000
तेलंगाना – 5000
केरल- 4000
दमन-दीव- 4000
पश्चिम बंगाल- 3000
आंध्रप्रदेश- 3000
हिमाचल प्रदेश- 2000
गोवा- 1000
पॉन्डिचेरी- 500
मेघालय-500
कुल =11,41000 लोगों के हस्ताक्षर हिंदी में परिवर्तीत हुए।
आसाँ नहीं है किसी भाषा में हस्ताक्षर करने के लिए जनजागृति लें आना, पर यह कार्य कर दिखाया आपके अपने *‘मातृभाषा उन्नयन संस्थान’* ने। निश्चित तौर पर कई लोगों के मन में संदेह होगा, संशय होगा कि कैसे किया, कही कुछ-कही कुछ।
किन्तु जल्द ही संस्थान उन 11 लाख से अधिक लोगों के प्राप्त प्रतिज्ञा पत्रों को सार्वजनिक करेगी और आम हिंदी प्रेमी भी उन्हें देख सकता है, उनसे बातचीत कर जानकारी लें सकता हैं।
मातृभाषा उन्नयन संस्थान की मंजिल यह नहीं है, ये महज एक पड़ाव है जिस पर हर हिंदी प्रेमी को अभिमान होना चाहिए।
हमारी मंजिल तो तब नज़र आएगी जब हम अपनी आँखों से हिंदी के सूर्य को उगता हुआ देखेंगे और हिंदी इस हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा बनेगी।
इसके लिए हम सभी का दायित्व है कि हम अपने से जुड़े लोगों को प्रेरित करें, मातृभाषा उन्नयन संस्थान के समर्थन में आकर हिंदी सेवा करें, अपने हस्ताक्षर हिंदी में परिवर्तित करें, हिंदी में अपना कार्यव्यवहार करें और हिंदी को निज हॄदयासन पर विराजित कर उसका अधिकाधिक प्रयोग करें।
गुणवत्ता युक्त साहित्य सृजन करें, न कि सम्मान खरीदें आदि।
असल सम्मान तो तब है जब आपका कार्य प्रमाणिका है। 3
मैंने महाविद्यालयीन जीवन में एक स्वप्न देखा था कि जिस राज्य में जाऊँ वहाँ कोई चाय पिलाने वाला अपना हो तब तो जीवन सार्थक होगा। असल में यह चाय तो एक बहाना है किंतु मूल में इतने संपर्क बनें हो यह महत्वपूर्ण हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान को 11 लाख लोगों के हस्ताक्षर बदलवाने के बाद इस विश्व कीर्तिमान के मिलते ही प्रमाणिका रूप से विश्व का सबसे बड़ा हिंदी सेवी संस्थान *मातृभाषा उन्नयन संस्थान* बन गया।
हमनें न हजारों लोगों को सम्मानित किया,न लाखों रचनाएँ प्रकाशित की, न ही सैकड़ों किताबें छापी और न ही किसी से कोई जोर जबर्दस्ती की, बस अपना काम मन लगाकर करते रहें और आज आप सभी हिंदी प्रेमियों के स्नेहील साथ व आशीर्वाद से परिणाम सुखद रहा।
आगे भी आप सभी के साथ आए निश्चय ही सफलता मातृभाषा उन्नयन संस्थान को मिलेगी ।
*डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*
राष्ट्रीय अध्यक्ष- मातृभाषा उन्नयन संस्थान