*इंदौर:-बाबा*
रिश्ते पैसों के मोहताज नहीं होते और ना ही पैसे से रिश्ते खरीदे जा सकते हैं। जो लोग पैसे के चक्कर में रिश्तो को खो रहे हैं उनको नहीं मालूम कि वह अपना तो नुकसान करा कर ही रहे हैं आने वाली पीढ़ियों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह सारगर्भित बात विचारक एवं चिंतक अंबर अंबोदेकर ने अन्नपूर्णा क्षेत्र माहेश्वरी समाज द्वारा आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए कही। माहेश्वरी विद्यालय परिसर छत्रीबाग में आयोजित इस विचारोत्तेजक व्याख्यान का विषय था ‘बदलते परिवेश में रिश्तो की महत्ता’। आपने कहा कि हम ही ने अपने रिश्तो को तार-तार किया है और उसी के परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। संयुक्त परिवार से हम एकल परिवारों में जीना पसंद करते हैं और ऐसे में परिवार पर आई किसी भी समस्या का सामना हमें अकेला करना पड़ता है। आज नौकरीपेशा युवा महिलाएं अपने छोटे बच्चों को डे केयर में छोड़ कर नौकरी करने जाती है और अपने ही बच्चे से उसका बचपन छीन लेती है, तो बताइए बच्चा अपने पेरेंट्स से क्या शिक्षा लेगा? वह भी बड़ा होगा तो पैसा कमाने के चक्कर में अपने पेरेंट्स को छोड़ देगा क्योंकि उसने यही देखा है और यही सीखा है। आपने कहा कि आज सोसाइटी में तलाक बहुत सामान्य हो गए हैं जबकि 30 साल पहले तलाक जैसी कोई बुराई हमें नजर नहीं आती थी। इसका कारण है कि दो अलग अलग स्वभाव और व्यवहार में पले हुए लोग एक दूसरे पर अपनी बातें थोपना चाहते हैं, मनाना चाहते हैं। इस सच्चाई को हमें समझना होगा कि शादी के पहले 25 साल तक जिस युवा के दिमाग में यह प्रोग्रामिंग डाल दी गई हो की उसकी हर मांग उसके घरवाले पूरा करेंगे तो उस युवा से शादी के बाद समझौते करने की बात की जाए तो वह परेशान हो जाता है। सामंजस्य नहीं बैठने से बात तलाक तक पहुंच जाती है। कई उदाहरण से अंबर ने समझाया की जीवन जीने की जरूरतों में पैसे का स्थान काफी नीचे है लेकिन आज हमने पैसे को ही सब कुछ मान लिया है। पैसे को लेकर हमारी हवस ने हमें अपने प्रगाढ़ रिश्तो से भी दूर कर दिया है। यदि समय रहते हुए हम अपने रिश्तो को नहीं थामेंगे तो हम अपनी जिंदगी को खुद नर्क बना लेंगे।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत अन्नपूर्णा क्षेत्र के अध्यक्ष अजय सोडानी, बी डी भट्टड तथा अशोक डागा ने किया। कार्यक्रम का संचालन मनीष बिसानी ने किया एवं स्मृति चिन्ह चेतन नागोरी तथा मनीष बिनानी ने भेंट किए। 1 घंटे के अपने धाराप्रवाह उद्बोधन में पूरे हाल में सन्नाटा छाया हुआ था और उपस्थित श्रोताओं ने तल्लीनता से यह व्याख्यान सुना।
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