डीएनयु टाईम्स , इंदौर
सड़कों पर लौटी रही ज़िन्दगी, इन्दौर फिर थोड़ा मुस्काया
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ की कलम से
कोरोना की भयावहता और देशबन्दी के कठिन हालातों ने जहाँ इंदौर या कहें समूचा देश ही 70 दिन से घरों में क़ैद बैठा रहा, कोरोना को हराने की जंग छेड़कर ख़ुद एक सैनिक की भाँति तटस्थ होकर मुश्तैदी से कोरोना के विरुद्ध लड़ रहा था, वहाँ आज सोमवार की सुबह इंदौर के लिए ताज़ी और स्वच्छंद साँस लेकर आई। प्रशासकीय महकमें ने जनप्रतिनिधियों की थोड़ी सुनी और इन्दौर की सड़कों पर रौनक को आने के लिए आमंत्रित किया। उसके कारण इंदौरी भी एहतियात के साथ थोड़ा बाहर आए, कोई खाने के समान के लिए तो कोई सब्ज़ी बेचने, कोई बच्चों के साथ अपनी मजबूरियों को मात देने तो कोई दो जून की रोटी की जुगत में सड़कों पर आया। सड़कों और शहर को निहारा, ठीक वैसे ही जैसे बच्चा ग्रीष्मावकाश के बाद जब पहले दिन विद्यालय पहुँचता है तो अपने पहले अपने विद्यालय में घूमता है, हर चीज़ देखता है, उसे महसूस करता है। यही हाल आज इंदौर का भी रहा। अपने शहर को लॉक डाउन के कारण क़ैद रहने वाले बाशिंदों ने भी उसी प्रेम और आत्मीयता से निहारा ।
इस प्रेम ने सबसे पहले घरों में क़ैद रहने के कारण जो अवसाद दिमाग़ में पैदा हुआ था, उसे भी मुक्ति देने का कार्य किया।
दरअसल, घरों में बैठे-बैठे भी मानव मन कुंद और कुंठाग्रस्त होता चला जाता है, और कोरोना काल में कोरोना का भय और साथ में अवसाद के कारण कई समस्याओं ने भी घर कर लिया था।
कोरोना संक्रमण के हालातों पर अभी बहुत ज़्यादा तो काबू नहीं हो पाया किन्तु अवसाद की जकड़न ज़रूर शहर की गति को बाधित कर गई थी। निःसंदेह अभी हमें सुरक्षित रहना है तो सावधानियों को रखते हुए ही कार्य करना है, व सावधानियाँ रखी भी हैं किंतु बावजूद इसके शहरवासियों को थोड़ी सुकून की साँसों की भी ज़रूरत थी। इसीलिए आज शहर की सड़कों पर होती थोड़ी चहलकदमी भी मन को ठंडा और हल्का कर रही थी। शहर जल्द ही स्वस्थ हो और ईश्वर मेरे शहर की रौनक को फिर लौटाएँ, यही तो हर इंदौरी कामना कर रहा है। कोरोना के साथ जीवनयापन करते हुए हमें अब अवसाद के विरुद्ध जंग लड़ना है और विश्वास है कि हम होंगे कामयाब!!!
जब भी आवश्यक कार्यों के लिए घर से आप बाहर आएँ, मास्क ज़रूर लगाएँ, पर्याप्त शारीरिक दूरी बनाएँ, हाथों को साबुन से धोएँ या सेनेटाइज़र से सेनेटाइज़ करते रहें, किसी को छूने आदि से बचें, यही सावधानियों के साथ इन्दौर को फिर मुस्कुराने दें!
सड़कों पर लौटी ज़िन्दगी,
पहियों ने विस्तार लिया।
हार नहीं मानी हमने भी,
ख़ुशियों ने आकार लिया।।
जय हिन्दी!!
*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
हिन्दीग्राम, इंदौर