*इंदौर:-बाबा यादव*
इंदौर शहर भले ही स्मार्ट सिटी हो गया हो मगर यहां के लोक वाहन चाहे निजी हो या सिटी बस हो सभी खटारा हालात है। कंडम स्थिति में शहर की सड़कों पर दौड़ रहे लोक परिवहन में लोग यात्रा भी कर रहे है और उन्हे हर कदम पर हादसे का डर भी बना रहता है। यहीं नहीं अधिक और जल्दी सवारी बैठाकर पायलेटिंग करने वाले वाहन यात्रियों की जान हमेशा जोखिम में डालते है। शहर की सड़कों पर इन बिगडैल वाहनों पर अंकुश लगाने वाला प्रमुख विभाग आरटीओ खामोशी की चादर ओढकर बैठा है और ट्राफिक पुलिस केवल चालान बनाकर दण्ड करना ही उचित समझती है।
*इंदौर हमारा शहर है………..इस शहर को नगर निगम ने स्वच्छता का तमगा तो दिला दिया……..केन्द्र ने स्मार्ट सिटी वालों शहरों में शामिल कर दिया……*
फिर इंदौर में संचालित होने वाले लोक वाहनों को देखने और उसमें सफर करने वाले यात्रियों की हालात देखकर सालों पुराने टेम्पों युग की याद आ जाती है। इंदौर की सड़कों पर चाहे जिस मार्ग की बात करें वहां चलने वाली टाटा मैजिक या सिटी वेन को देखे तो वह स्मार्ट सिटी की परिभाषा को प्रमाणित नहीं करती है। इन लोक वाहनों के कहीं से दरवाजे टूूटे है तो कहीं पिछला भाग लटक रहा है और भीतर सवारियां बैठी रहती है । अंधी कमाई की दौड में शामिल इन वाहनों की रफ्तार को देखते हुए लगता है कि अब सवारियां नीचे गिरी तब नीचे गिरी की स्थिति बनी रहती है। शहर में दौडने वाले टाटा म्यूुजिक वाहन शहरी सीमा में 538 तो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 750 आरटीओ में पंजीकृत है इनमें से करीब 70 प्रतिशत वाहन ऐसे है जो सड़क पर नियमों के तहत चलने योग्य नहीं है फिर भी वे बेधडक दौड़ रहे है। आरटीओं के रिकार्ड के अनुसार शहर में करीब 13000 आटो रिक्शा है और 220 सिटी बसें है जो प्रशासन के अधीन संचालित होती है। आटो रिक्शा जहां 50 प्रतिशत खराब है वहीं 30 प्रतिशत सिटी बसों का मेंटनेस नही हो रहा है। सिटी बसों में क्षमता से अधिक सवारियां भरी जाती है वह भी ऐसी बसों में जिनके कांच फुटे हो या उनके पतरे हवा में उडते हो । शहर के लोक वाहनों में शुमार ओला केब, कुबेर केब और निजी कारें जो टेक्सी में चलती है उनकी भी लगभग यही दशा है। इधर आरटीओ की आंखों में टाटा मैजिक और सिटी वेन वाले भी धूल झोकते है क्योकि उन्हे ग्रामीण क्षेत्रों का परमिट मिला है और वे शहरी क्षेत्र में सवारिया ढोती है।
*चालानी कार्रवाई पर ट्राफिक को भरोसा*
ट्राफिक पुलिस लोक वाहनों पर कार्रवाई इसलिए नहीं करती है कि वे खटारा हालात में चल रही है वे कार्रवाई इसलिए करते है कि यातायात नियमों का उल्लंघन करते है। पुलिस के रिकार्ड क ो देखे तो लोक परिवहन वाहनों पर साल दर साल चालानी कार्रवाई अधिक हो रही है । साल2016 में 5280 तो 2018 में 7082 टाटा मैजिक पर कार्रवाई हुर्इ्र है। इस साल अभी तक 3476 वाहनों ने चालान बनाए है। ट्राफिक की चालानी कार्रवाई पर नजर डाले तो सभी प्रकार के लोक वाहनों पर की गई चालानी कार्रवाई में 2016 में 33926 वाहनों पर कार्रवाई हुई थी तो 2018 में यह संख्या बढकर 45103 हो गई । इस साल में अभी तक 9531 लोक वाहन चालानी कार्रवाई के शिकार हुए है। इन वाहनों में सिटी बस के एक भी चालान नहीं बने है।
*निजी वाहनों के अलावा सिटी बसे भी खटारा*
शहर में बीआरटीएस पर चलने वाली आई बस के अलावा सिटी बस नगर सेवा बनकर कर रह गई है। प्रशासन के अधीन चलने वाली सिटी बसों के कही पीछे से कांच गायब है तो कहीं इंचन वाले भाग के पतरे हवा में उडते है। सिटी बसों को तो माल वाहक बनाकर चलाया जा रहा है। यहीं नहीं प्रशासिनक अधिकार क्षेत्र के इन वाहनों का कोई टाइम टेबल नहीं है किस रूट की बस, कब, कहा, किस समय पहुँचेगी इसकी कोई जानकारी बस स्टाप पर नहीं होती।
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