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ईद पर ‘भारत’ बने सलमान ने रुमानियत में मिलाई देशभक्ति फिर भी रेटिंग 3/5

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डीएनयु टाईम्स (एजेंसी)

अब्बास अली जफर द्वारा निर्देशित फिल्म भारत साउथ कोरियन फिल्म ओड टू माय फादर की रीमेक है। इसमें निर्देशक उनके हीरो भारत के जीवन के 62 वर्षोंको दर्शाने की कोशिश करते हैं। कहानी 1942 से शुरू होती है और 2009 पर खत्म होती है। कहानी एक आम आदमी की है, जो अपने पिता को दिए वचन को निभाने के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करता है। हमें भारत की व्यक्तिगत कहानी के साथ-साथ 60 सालों में देश में हुए आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन भी देखने को मिलते हैं।

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के पहले से शुरू होती है कहानी

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का माहौल है और भारत के पिता (जैकी श्रॉफ) पत्नी (सोनाली कुलकर्णी ) और चार बच्चों के साथ भारत जाना चाहते हैं। परिवार जब पाकिस्तान से ट्रेन लेता है तो भारत की बहन गुड़िया परिवार से बिछड़ जाती है। इसके बाद भारत के पिता वहीं रुक कर गुड़िया को ढूंढने फैसला लेते हैं। वो भारत से अपने परिवार का ख्याल रखने का वचन लेते हैं। भारत अपनी मां और दो भाई-बहन के साथ इंडिया में बुआ के घर आ जाता है। बुआ राशन का दुकान चलाती है और भारत जिंदगीभर इस दुकान को बचाकर रखना चाहता है, क्योंकि वही उसके पिता के साथ की आखिरी कड़ी है। वो उम्मीद रखता है कि उसके पिता किसी दिन अपने परिवार को ढूंढते हुए आएंगे।

अली अब्बास जफर की कहानी दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण

वरुण व्ही. शर्मा के साथ लिखी गई अली अब्बास जफर की कहानी दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण है। भारत और उसका जिगरी दोस्त विलायती (सुनील ग्रोवर) बचपन में द ग्रेट रशियन सर्कस में काम करते-करते बड़े होते हैं। भारत 60 के दशक का मशहूर स्कूटर स्टंट करने में माहिर है। सर्कस में भारत की मुलाकात राधा (दिशा पाटनी) से होती है, उससे प्यार करती है। 80 के दशक में भारत सर्कस छोड़कर अरब चला जाता है। यह तब की बात है, जब मिडल ईस्ट में तेल पाया गया था और सैकड़ों भारतीय काम ढूंढते हुए गल्फ चले गए थे। अरब में भारत की मुलाकात कुमुद (कटरीना कैफ) से होती है और दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं। बाद में जब भारत की बुआ के पति (कुमुद मिश्रा) दुकान बेचना चाहते है तो उसे बचाने के लिए भारत विलयाती के साथ मर्चेंट नेवी में काम करने लगता है। इस बीच फिल्म हमें बताती है कि कैसे 90 के दशक में मनमोहन सिंह द्वारा देश में आर्थिक उदारीकरण लाया गया। इसी बीच कहानी 1983 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की जीत, फिर दो सुपरस्टार्स शाहरुख खान और सचिन तेंदुलकर के किस्सों को छूती है।

कई जगह निराशाजनक है निर्देशन

फिल्म की कहानी 60 साल के सफर को दर्शाने की बखूबी कोशिश करती है। लेकिन कई जगह अली अब्बास जफर का निर्देशन निराशाजनक है। कई जगह सर्कस और अरब में माइनिंग के सीन्स हैं, जिन पर बेहतरीन काम किया गया है। लेकिन बहुत से ऐसे सीन्स भी हैं, जहां डायरेक्टर ने कुछ ज्यादा ही सिनेमेटिक लिबर्टी ली है। डायरेक्टर का ज्यादातर फोकस इस बात पर रहा कि उनका हीरो कितना बहादुर है।

भारत के किरदार के साथ सलमान ने किया न्याय

सलमान खान ने किरदार में ढलने की भरपूर कोशिश की है और उनके यह कोशिश सराहनीय कही जा सकती है। इस किरदार में बहादुरी से ज्यादा सेंसेटिविटीकी जरूरत थी साथदर्शकों के साथ इमोशनल कनेक्ट भी बनाना था। कटरीना कैफ ने अच्छी कोशिश की है और यह उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस में से एक हैं। सुनील ग्रोवर ने बढ़िया काम किया है। खूबसूरत दिखी दिशा पाटनी ने अच्छी परफॉर्मेंस दी है। बाकीकिरदार जैसे जैकी श्रॉफ, कुमुद मिश्रा ने भी ठीक काम किया है। तब्बू का रोलछोटा लेकिन असरदार है।

बेहतरीन सिनेमैटोग्रफी, सुरीला म्यूजिक

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी मारकिन लासाकवीक ने की है, जो काफी अच्छी है।विशाल-शेखर का म्यूजिक सुरीला है। स्लो मोशन में सॉन्ग पहले ही हिट हो चुका है।

बिना वजह फिल्म को लंबा खींचा गया

2 घंटे 40 मिनट की इस फिल्म को बेवजह लंबा खींचा गया है। अगर आप सलमान के जबर्दस्त फैन्स हैं तो इसे देख सकते हैं। क्योंकि फिल्म के हर फ्रेम में आपको सलमान दिखेंगे।

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