डीएनयु टाईम्स (भोपाल,अभिषेक बडजात्या)
किन खातों में जा रही थी मानदेय घोटाले की राशि, नहीं कराई जांच
भोपाल
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं के मानदेय घोटाले में महिला एवं बाल विकास विभाग की कार्यप्रणाली पर अंगुली उठने की एक वजह और है। अव्वल तो विभाग ने जिम्मेदारों के खिलाफ चार साल में जांच ही पूरी नहीं की। वहीं उन लोगों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण तक दर्ज नहीं कराया, जिनके बैंक खातों में वह राशि जमा कराई जा रही थी, जो मानदेय के नाम पर फर्जीवाड़ा कर सरकारी खजाने से निकल रही थी। ऐसे लोगों में बाल विकास परियोजना कार्यालयों में पदस्थ कंप्यूटर ऑपरेटर, उनके परिजन एवं जिम्मेदार अधिकारियों के परिचित एवं रिश्तेदार भी थे। विभाग के स्तर पर कराई गई प्रारंभिक जांच में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है।
राजधानी में छह साल तक चले इस घोटाले में आरोपित बाल विकास अधिकारियों, लिपिकों, कंप्यूटर ऑपरेटरों और उनके परिचितोंस्वजनों सहित महिला-बाल विकास संचालनालय में पदस्थ रहे कुछ अधिकारी भी बराबर के जिम्मेदार हैं, पर सभी को बचा लिया गया और अब मामले की फाइल बंद होने की स्थिति में है। जबकि मामले के हर पहलू की जांच बारीकी से की जानी चाहिए थी। यह ऐसे में और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब प्रारंभिक जांच में कई नाम सामने आ चुके हों, पर विभाग में उच्च स्तर पर अधिकारियों के बदलने के साथ ही जांच भी कमजोर होती चली गई।
उल्लेखनीय है कि राजधानी की आठ बाल विकास परियोजनाओं में चार करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ था। बाल विकास परियोजना अधिकारी, लिपिक एवं संचालनालय के अधिकारी मिलकर कागजों में हेराफेरी कर अपने कार्यक्षेत्र के कार्यकर्ता और सहायिका का मानदेय महीने में दो बार निकाल लेते थे। इसमें से एक बार का मानदेय कार्यकर्ता और सहायिका के बैंक खाते में जाता था और दूसरी बार के मानदेय की बंदरबाट हो जाती थी।
बैंकों से रिकॉर्ड लेते, तो और परतें खुलतीं
जानकार बताते हैं कि फर्जी तरीके से निकाला गया मानदेय जिन बैंक खातों में जमा कराया गया है। उनका रिकॉर्ड बैंकों से लेकर जांच की जाती, तो बहुत से अधिकारियों के चेहरे से नकाब उतर जाता, लेकिन इसके लिए आपराधिक प्रकरण दर्ज कराना जरूरी था। क्योंकि बैंक का रिकॉर्ड पुलिस के माध्यम से ही निकाला जा सकता था। इसलिए विभाग ने जांच आगे बढ़ाई ही नहीं।