*“अनोखा बेस्टी ग्रुप (लघुकथा)”*
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका की कलम से DNU के लिए विशेष)*
*साभार बाबा यादव*
राधा की एक बहुत बड़ी कमजोरी थी कि वह सहजता और सरलता से सब पर विश्वास कर लेती थी। विवाह के पश्चात राधा केशव के संग नई जगह नए लोगों से जुड़ी। कहा जाता है कि दोस्तो से हमेशा दिल के मनोभाव बाँट लेने चाहिए। यहीं बात राधा ने अमल में लाई। राधा भी नवीन जीवन के उतार-चढ़ाव, अच्छाई-बुराई अपने मित्रों से सांझा कर लिया करती थी, पर वो तो इस बात से अनजान थी कि मुँह पर मीठा बोलने वाले लोग तो पीठ फेरते ही पंचायत और अतिरिक्त मूल्यांकन करना शुरू कर देते है। कुछ समय पश्चात वह कुछ और लोगों से जुड़ी। कुछ छोटे-छोटे उत्सव और आयोजन से लोगों से घनिष्ठता हुई। राधा कभी भी किसी के मनोभावों को ईधर-उधर पिरोने का कार्य नहीं करती थी उसे लोगों के व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण से कोई सरोकार नहीं था, पर वह इस सत्य को नहीं समझ पाई कि वे सभी तो क्षणभर में ही गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग है।
आज का जमाना टेक्नोलोजी का जमाना है। नया व्हाट्सप्प ग्रुप बना जिसका नाम “बेस्टी” रखा गया। जिसमें राधा को भी जोड़ा गया, पर यह बेस्टी ग्रुप तो केवल मुँह पर ही मीठा था। वहाँ तो मित्रता मनोरंजन का अंग थी। राधा भी उस बेस्टी ग्रुप के साथ जुड़कर अपने जीवन के मूल उद्देश्य को भूल गई। कुछ समय अंतराल के पश्चात कुछ कारणों के चलते वह उस बेस्टी ग्रुप से दूर हुई। राधा के पति केशव का एक मूल वाक्य था कि जो व्यक्ति औरों की बुराई और मूल्यांकन तुम्हारे सामने करता है वह निश्चित ही तुम्हारे पीछे दूसरों के सामने तुम्हारे बारे में टिका-टिप्पणी करता होगा। बस यहीं बात राधा के हृदय को छु गई। अब उसने इस फालतू बेस्टी ग्रुप से दूर होकर अपनी पहचान बनाने और ज्ञान की आराधना में संलग्न होने का दृढ़ निश्चय किया।
इस स्वनिर्णय से राधा के जीवन के आयाम बदल गए। उसने सफलताओं के छोटे-छोटे सौपनों को तय करना शुरू किया। राधा की जिंदगी अब एक नई दिशा पकड़ चुकी थी और अब वह अच्छी संगति पाकर कुछ नवीन करने को प्रेरित थी। पिता तो बाल्यकाल से ही उसे समझाते थे कि जीवन में संगति का असर होता है, पर आज राधा को पिता का ज्ञान और केशव की सीख व्यावहारिक जीवन में पूर्णतः प्रायोगिक लगी। कई बार इंसान अनुभव की ठोकर से ही सही-गलत में अंतर कर पाता है। यह लघुकथा हमें सीख देती है कि लोगों की बुराई और उनके मूल्यांकन से दूर होकर हमें स्वमूल्यांकन को प्राथमिकता देनी चाहिए एवं जीवन में अच्छे लोगों की संगति में रहकर कुछ नवीन एवं रचनात्मक करके मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। दूसरों में दोष खोजने की बजाए उनके गुणों को जीवन में आत्मसात कर हम अपना जीवन श्रेष्ठ बना सकते है।
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*