*विवाह उत्सव का समय चल रहा है और मौसम अपना रुख बदल रहा है। सर्द हवाओं का रुख भी शबाब पर है तो क्या *“सोच, सामर्थ्य और सहयोग” हो*
बाबा
विवाह उत्सव का समय चल रहा है और मौसम अपना रुख बदल रहा है। भयंकर शीतलहर, ओलावृष्टि, बारिश और बढ़ती हुई ठंड कहीं न कहीं व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास कर रही है। समय परिवर्तित होता जा रहा है और केवल दिखावे के लिए अत्यधिक धनराशि खर्च कर बेहतर से बेहतर सजावट को प्राथमिकता दी जा रही है। पर कहीं न कहीं टेंट में अत्यधिक धनराशि खर्च करने के उपरांत भी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है, जबकि धर्मशाला मौसम की कैसी भी प्रतिकूलता से आपको सुरक्षा प्रदान कराने में सक्षम है। यदि समाजहित में अपनी सोच को थोड़ा विस्तृत किया जाए तो समाज की एक धर्मशाला कई पीढ़ियों के सामाजिक रीति-रिवाजों के आयोजन में सहयोग दे सकती है। अतः अपनी सामर्थ्य के अनुरूप उसके निर्माण में सहयोग दे, भविष्य में कई जरूरतमंदों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है। कई लोग दिखावे के कारण समारोह में लाखों-लाखों के टेंट लगवाते है परंतु यह टेंट पूर्ण सुरक्षा, सुविधा प्रदान नहीं कर पाते है और धर्मशाला का ही आश्रय लेना पड़ जाता है और उसमें ही कार्य सम्पन्न कराना पड़ता है।
अतः समाज के कार्यों में अपनी संकीर्ण सोच को गति न दें और समाजहित में निर्माण और उपयोग को प्रेरित करें एवं फिजूलखर्ची से बचें, क्योंकि विवाह में पल-पल पाई-पाई जोड़कर स्वागत सत्कार की तैयारी की जाती है। उस मूल्यवान धन को परिवार, कुटुंब एवं समाज के हित में उपयोग करें। मौसम की मार को अनगिनत धनराशि खर्च कर बनाए गए टेंट नहीं बचा पा रहें है, पर सहायता प्राप्त कर बनी हुई धर्मशाला यह सब सहने में सक्षम है। आने वाले समय में भावी पीढ़ी को बढ़ती जनसख्या, महंगाई का भी सामना करना है। इसके लिए उन्हें दिखावे से दूर रहना सीखाना होगा। धर्मशाला में दी हुई छोटी सहयोग राशि भी आने वाले समय मे किसी जरूरतमंद को कई कार्यक्रमों को करने में मदद कर सकती है। सदैव याद रखें कि आप अपनी हैसियत के अनुरूप खर्च को प्राथमिकता दे। यह भी एक कड़वा सच है कि यदि किसी को कमी निकालना है तो वह आपके बेहतर प्रयास को भी अपनी संकीर्ण मानसिकता से न्यून कर देगा। स्व और समाज हित में अपनी सोच को उदार कर, सामर्थ्य अनुरूप यथोचित खर्च करें और समाजहित में सहयोग करें।
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*