*इंदौर:-बाबा यादव*
इंदौर के आरटीओ की सेंटिग के चलते निजी बस आॅपरेटरों खासकर इंदौर भोपाल के बीच चलने वाली स्लीपर कोच के मालिकों की मनमानी चरम पर है। बसों में यात्रियों से किराया तो स्लीपर का लेते है ओर सवारियों को मवेशियों की तरह ठूस ठूसकर बैठाते है। क्षमता से अधिक सवारियों ढोने पर हमेशा दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है।
इंदौर से भोपाल के बीच चलने वाली विडियों कोच बसों में दो तरह की सीटे रहती है एक सीट तो सिंगल होती है तो दूसरी सीट डबल सवारी के लिए है। मगर बस आॅपरेटर स्लीपर कोच बसों को सिटिंग बस के रूप में उपयोग करते हेै जो नियमों के विपरित है। बसें जो इंदौर से भोपाल के बीच चलती है उनमें सिंगल स्लीपर सीट पर चार सवारियओं को बैठाया जाता है। यदि कोई दुबला पतला यात्री हो तो उसे टाटा मैजिक की तरह और सवारियों बैठा देते है। इसी तरह डबल स्लीपर में आठ सवारी ठूंस ठूसकर बैठाते है और यदि कोई सवारी इसका विरोध करती है तो उसे ना केवल दुर्व्यवहार किया जाता हैबल्कि बसों से उतार दिया जाता है। यानि स्लीपर कोच बस में बस आॅपरेटर की मनमानी के खिलाफ कोई बोले तो उसकी सुनवाई की कोई गुंजाइश नहीं होती है।
*अधिकारी को नहीं दिखती है ऐसी बसे*
आरटीओ की सेंटिग से चलने वाली स्लीपर बसों को सिंटिग बस पर कार्रवाई करने की किसी भी जिलों में अन्य अधिकारियों की हिम्मत नहीं है। क्योकि बसों के मालिकों का सीधा जुडावा आरटीओ से रहता है। इंदौर के उडन दस्ते के प्रभारी अधिकारी और उनकी टीम ने पिछले दिनों ग्वालियर से आए आदेश के बाद 1 जून से 15 जून तक विशेष अभियान चलाया था जिसमें बसों के परमिट, फिटनेस ओर टेक्स के बकाया होने की पड़ताल की थी। सामान्य तौर पर की जाने वाली चेकिग में तो दूर विशेष अभियान में भी ऐसी स्लीपर बसे किसी भी दस्ते को नही दिखी।
*बस हादसे होने के बाद जागेगा प्रशासन*
आरटीओ यदि कोई गड़बडी करके वाहनों को संचालित होने देता है तो उस पर कार्रवाई करने के लिए यातायात पुलिस और प्रशासन की टीम को अधिकार है मगर सभी लोग इस ओर ध्यान नहीं देते है । प्रशासन की नीद उस समय खुलती है जब डीपीएस बस हादसे जैसी कोई घटना होती है। ग्वालियर और भोपाल में भी बैठे अधिकारी किसी बडे हादसे के बाद ही नींद से जागते है। नियमों के अनुसार स्लीपर बस को सिंटिग बस में चलाने पर उसका फिटनेस निरस्त किया जाना चाहिए।
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