भगत सिंह :-एक क्रांतिकारी और विचारक
भारतीय स्वाधीनता संग्राम की बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में भगत सिंह भी महात्मा गाँधी के समान ही भारतीय जनमानस में अपनी देशभक्ति और आत्म बलिदान के लिए अत्यंत लोकप्रिय थे आज भी भगत सिंह भारत के युवाओं के प्रेरण स्रोत हैं भगत सिंह एक क्रांतिकारी के रूप में याद किये जाते हैं जो कि गलत है भगत सिंह एक क्रांतिकारी के साथ साथ एक समाजवादी गणतांत्रिक विचारधारा पर भी अटल विश्वास करते थे. स्वतंत्रता के बाद वह भारत में समाजवादी गणतांत्रिक शासन को स्थापित करना चाहते थे. उनका जन्म 28 सितम्बर 1907 ई. में किशन सिंह ( पिता )और विद्यावती कौर ( माता) के यहाँ पंजाब में हुआ था. उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को बचपन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते हुए देखा था. भगत सिंह विचारशील व्यक्तित्व के धनी थे. वो ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी, दमनकारी, भेदभावपूर्ण आदि नीतियों से उद्वेलित होने के साथ साथ भारतीय समाज में विद्यमान जातिवाद, ऊंच नीच के संस्करण के प्रति भी आक्रोशित थे. विद्यार्थी जीवन से ही वे क्रांति द्वारा भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर थे . उनका मानना था कि भारत में जब तक समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य स्थापित नहीं हो जाता है तब तक जातिगत भेदभाव, निर्धन वर्ग का शोषण और दमन होता रहेगा, मजदूरों को उनका पारिश्रमिक नहीं दिया जाता और किसानों को भूमि का स्वामी व फसल का पूरा मूल्य नहीं मिलता आदि होता रहेगा. वे किसानों और मजदूरों के हित में विश्वास करते थे. भगत सिंह ने ही ‘इंकलाब जिंदाबाद’के नारे को लोकप्रिय बनाया था. उन्होंने ‘ नौजवान भारत सभा’(1925) के संस्थापक होने के साथ साथ क्रांतिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’(1924) तथा 1928 ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’(1928) के सक्रिय सदस्य भी थे. भगत सिंह काकोरी ट्रेन लूट काण्ड(1925), पुलिस अधीक्षक साण्डर्स हत्याकांड(1928) एवं 8 अप्रैल 1928 ईस्वी को बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली की ‘सेन्ट्रल असेंबली’( विधानसभा) में बम एवं पर्चे फेंककर अपनी गिरफ्तारी दी. उसके बाद लाहौर में बम बनाने का कारखाना पकड़ा गया भगत सिंह का भी इस बम कारखाने से नाम जोड़कर ‘1929 में ‘ लाहौर षडयंत्र केस’ चलाकर 23 मार्च 1931 ईस्वी में राजगुरू व सुखदेव के साथ फांसी की सजा दे दी गई.
भगत सिंह एक क्रांतिकारी, विचारक और देशभक्त के रूप में भारतीय जनमानस में अत्यधिक प्रसिद्ध है क्योंकि उन्होंने अपने देश को स्वतंत्रता कराने के लिए युवावस्था में मृत्यु का आलिंगन कर लिया था. युवा जब प्रेम और विवाह के सपने संजोते है उस उम्र में वो भारत देश को ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के सपने देखते थे. भारत की स्वतंत्रता की वेदी पर उन्होंने हंसते हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. हर भारतीय का उत्तरदायित्व है कि ऐसे अनगिनत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों का हंसते हंसते बलिदान कर दिया या जेलों में अनगिनत साल गुजर दिए, हंसते हंसते अंग्रेजों के कोड़े और गोलियां खाई लेकिन अपने उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी दिलाना है से तनिक भी विचलित नहीं हुए भगत सिंह जैसे. क्या हम भारतीय उन आत्म बलिदानियों के बलिदान को सुरक्षित रख पा रहे हैं? देश के भीतर अमीर गरीब की बढ़ती खाई, बढ़ता भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, कर्तव्यों के प्रति लापरवाही, जातिवाद, पर्यावरण प्रदूषण, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आधार पर असमानता, धीमी न्याय प्रक्रिया आदि समस्याएं भगत सिंह जैसे देशभक्तों, क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान के साथ छलावा है. भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति, प्रशासन , सांस्कृतिक आदि संस्थाओं में समानता, स्वतंत्रता, पारदर्शिता, निष्पक्षता, जवाबदेही, न्याय आदि गुणों को अपनाकर ही हम भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर पायेगें.
खेमराज आर्य
सहायक प्राध्यापक इतिहास
शासकीय आदर्श कन्या महाविद्यालय श्योपुर मध्यप्रदेश