*“प्रथमपूज्य उमासुत, शिक्षाओं के है दूत”*
*प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता तो है अनेक शिक्षाओं के दूत।*
*अमंगल को मंगल में परिवर्तित करते उमासुत॥*
*है सुख करता दु:खहर्ता पार्वती नन्दन करते हम यहीं प्रार्थना।*
*डॉ. रीना कहती, विषाद के क्षणों से न हो किसी का सामना॥*
हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार गणेशजी को पाँच प्रमुख देवो विष्णु, शिव, सूर्य, माँ दुर्गा के साथ स्थान मिला है। गणेशजी का स्वरूप अत्यंत ही विचित्रता लिए हुए है। विलक्षण बुद्धि और प्रतिभा के वे धनी है। विघ्नविनायक के स्वरूप, उनकी आकृति एवं उनके बारे में विश्लेषण किया जाए तो जीवन की अनेक सफलता के सूत्र हमारे समक्ष परिलक्षित होंगे। गजमुख और गजानन, यह रूप हमें शिक्षा देता है कि मनुष्य की वास्तविक पहचान उसके गुणो से होती है। गणेशजी के गुणो के कारण ही स्वयं देवो के देव महादेव ने उन्हें अग्रपूजन विधान का आशीर्वाद दिया था। समय-समय पर सभी देवताओं ने उन्हें अपनी रक्षा एवं राक्षसों के संहार के लिए आह्वान किया। गजानन का चौड़ा मस्तक यह संदेश देता है कि व्यक्ति को सदैव उदरवादी होना चाहिए। संकुचित और संकीर्ण विचारधारा उसकी अवनति का मार्ग प्रशस्त करती है। बड़ी सोच बड़े सपनों एवं सफलता की जनक है।
गजमुख अपने बड़े कानों से संदेश देते है कि ध्यान जीवन में महत्वपूर्ण है। उनके लंबे कर्ण ध्यान से सुनने को प्रेरित करते है। ध्यान से सुनने पर ही गहराई से चिंतन मनन कर हम सत्य-असत्य के बीच भेद कर सकते है और अपने लिए उचित-अनुचित का निर्णय कर सकते है। विघ्नहर्ता के छोटे-छोटे चक्षु उनकी एकाग्रता के प्रतीक है। एकाग्रता ही सफलता की क़ुंजी है। वे अपने निर्णय एकाग्रता और सूक्ष्म दृष्टिकोण के साथ लेते है। उनका छोटा मुख कम बोलने की ओर प्रेरित करता है। कम बोलने से तात्पर्य कार्यों के करने न कि बड़बोले बोल बोलने में निहित है। हमें अपनी ऊर्जा कार्यों को परिणाम रूप में परिवर्तित करने में खर्च करनी चाहिए। उत्तम जीवन के लिए उत्तम स्वास्थ्य का होना जरूरी है और इस प्रक्रिया में पाचनक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है। लंबोदर कहते है कि शांत भाव से अच्छाई और बुराई दोनों को ग्रहण करों। जिस इंसान ने गणनायक के इस गुण को आत्मसात कर लिया, अर्थात सही-गलत को समभाव से पचा लिया उसने जीवन की जंग को जीतना सुनिश्चित कर दिया।
उनकी बड़ी सूँड यह संकेत देती है कि हमें अपनी कार्यक्षमता और कार्यदक्षता में वृद्धि करनी चाहिए। निरंतर अभ्यास के द्वारा ही हम अपनी कार्यक्षमता को बढ़ा सकते है। उनको अर्पित किए गए मोदक खुशियों एवं उत्सव का प्रतीक है। मोदक की विशेषता होती है की वह मुलायम और पचने में आसान होता है। जीवन को सदैव एक उत्सव की तरह जीना चाहिए। मूषक का स्वभाव चंचल होता है और गणेशजी उस पर सवारी कर उसे नियंत्रित करते है। गणेशजी की चारों भुजाएँ चारों दिशाओं में निरंतर गतिमान रहकर कार्य सम्पादन को प्रेरित करती है। दूर्वा गणेशजी की प्रिय कही जाती है, क्योंकि दूर्वा औषधीय गुणो से भरपूर है एवं रोगों को दूर करने के लिए उपयुक्त है। इसमें एंटिसेप्टिक गुण विद्यमान है जो त्वचा संबंधी रोगों का निदान करती है। डायबिटीज़, आँखों एवं कई संक्रमण में भी यह लाभकारी है। उमासुत अपनी ज़िम्मेदारी निर्वहन में भी अग्रणी थे, इसीलिए वे सभी देवताओं के लिए वंदनीय एवं पूजनीय है।
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*