*“रहे ना रहे हम….. महका करेंगे”*
इंदौर:-बाबा
लता जी का जाना तो एक युग का अवसान है। वह लता जी जो सुरों का संज्ञान थी, भारत की पहचान थी। आप तो अपने मधुर स्वर से हर गीत में स्वयं ही अमर हो गई। आप तो एक ऐसी सूरो की मलिका थी जिनके तराने युगो-युगो तक लोगों को गुनगुनाने और झूमने पर विवश कर देंगे। यह कैसा निष्ठुर बसंत था जो जीवन में बहार का स्वर देने वाली अनूठी कोकिला को ही मौन देकर चला गया। आपकी असीम सुर साधना की क्षमता तो आवाज के जादू से शब्दो के लौह कण को कुन्दन में सृजित और परिवर्तित करने का अनोखा जादू रखती थी। आपके बोल तो अनायास ही अधरों पर नाचने लगते थे। नश्वर शरीर का अंत तो निश्चित है, पर आपके स्वर से सजा स्वर्णिम युग सदैव जीवंत रहेगा। आपका स्वर तो पूरी दुनिया के संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करने की क्षमता से परिपूरित था। आपकी स्वर लहरें तो दशको तक प्रशंसकों के दिल में हिलौरे मारती रहेगी।
नियति का नियामक चक्र देखिए जिस सुर साम्राज्ञी पर माँ शारदे की असीम कृपा थी वह उन्हीं के साथ विदा हो गई। आपने अपने अनूठे स्वर से लगभग 50 हजार से भी ज्यादा गीत सँजोये। आपकी संगीत साधना भारत रत्न, पद्मविभूषण, दादा साहेब फाल्के अवार्ड और कई उन्नत उपलब्धियों से अलंकृत हुई। आप तो वाग्देवी की वो सच्ची आराधक थी जो अनुपम नगमों के साथ सदा गुनगुनाई जाएगी। सरस्वती की कृपा अनुरूप कई सदियों में शायद एक लता जी पैदा होती है जो जनमानस के हृदय को अपनी सुर साधना से तरंगित करने की असीम क्षमता रखती है। उनके मर्म को स्पर्श कर सकती है, छू सकती है। आपका सफर 1929 से 2022 का वो यादगार सफर है जो लोगों के दिलों में घर बना गया। आपकी आवाज ने दिलों की गहराइयों में एक अमिट छाप छोड़ दी। आपके जैसी अद्भुत प्रतिभा का अवतरण तो सच में ईश्वरीय आशीर्वाद है। जब भी आपके स्वर कर्ण में गूँजेंगे हम आपका अमरत्व आपके स्वर के माध्यम से स्पर्श कर लेंगे। मिट्टी का शरीर ही तो मिट्टी में विलीन हुआ है पर आप स्वर के ज्योतिपुंज से अमरत्व की ऊँची सीढ़ियों को छु चुकी हो और सदैव सिरमौर कहलाई जाओगी। संगीत के वटवृक्ष को अपने स्वर प्रेम से लता जी ने ही तो सींचा था। कला की अनूठी साधना में संगीत जगत में आपके स्वर की अपूरणीय क्षति को कोई भी पूरा नहीं कर पाएगा। मधुर कंठ की महारानी चीर निद्रा में जरूर चली गई पर अपने स्वर का आशीर्वाद देकर हमें उल्लासित और झूमता हुई छोड़ गई। इंदौर में जन्मी पंडित दीनानाथ मंगेशकर और शेवन्ती की लाड़ली ने फिल्मी गीतों को अपनी आवाज का जादू दिया। उनकी इसी आवाज ने कई फिल्मों को लोकप्रियता के आयाम दिए। संगीत की स्वामिनी सादगी और सौम्यता की मूर्ति सरस्वती की अनवरत साधना में लीन साधिका अपने हृदय स्पर्शी गीतों के साथ उम्र के बंधनों को पीछे छोडते हुए पुरानी और नई दोनों अदाकाराओं की सफल आवाज बनी। आपके साथ ही तो सबने सुरों के स्वाद को जाना। इस यशस्वी स्वर कोकिला का यूं खामोश होना हर इंसान के मन को आहत कर गया पर आपके सँजोये अमूल्य संगीत की धरोहर का खजाना हमारी आने वाली पीढ़ियों के पास भी सुरक्षित है। आपके जाने से नैनों में अश्कों की लड़ियाँ जरुर है पर आपके स्वर की गूँज सारी फिज़ाओं को महका रही है और जीवन को बसंत के नए आयाम दे रही है। ईश्वर की रचित सृष्टि के पंचतत्व में विलीन स्वर कोकिला को सजल नेत्रों से श्रद्धांजलि, भावपूर्ण नमन एवं श्रद्धासुमन अर्पित करते है। आप अपने अनूठे स्वर की धरोहर से हमारे स्मृतिपटल पर सदैव जीवंत रहेगी।
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*