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*आधुनिक भारत की प्रथम महिला समाज सुधारक सावित्री बाई फुले,नारी मुक्ति आंदोलन की प्रेणता,देश की पहली महिला शिक्षिका को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन कोटी-कोटी प्रणाम*

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*आधुनिक भारत की प्रथम महिला समाज सुधारक सावित्री बाई फुले,नारी मुक्ति आंदोलन की प्रेणता,देश की पहली महिला शिक्षिका को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन कोटी-कोटी प्रणाम*

आधुनिक भारत की प्रथम महिला समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले वर्तमान में भारतीय समाज में जो समता, स्वतंत्रता, सामाजिक-आर्थिक  न्याय और एकरूपता दृष्टिगोचर हो रही है उसकी पहल फुले दंपती द्वारा की गई थी. अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के भारत में जाति और वर्ण व्यवस्था के कारण महिलाओं और दलित- पिछड़े वर्ग को भारतीय समाज के गतिहीन और जड़ सामाजिक ढांचे के कारण अनेक निर्योंग्यताओ के कारण विकास के अवसर उपलब्ध नहीं थे. उनको समाज में दोयम दर्जा प्राप्त था. न मान न सम्मान और न ही स्वयं के स्तर को ऊपर उठाने के लिए आजादी का वातावरण. उस समय जातिप्रथा, अस्पृश्यता, अंधविश्वास, कुरीतियों-कुप्रथाओं, अशिक्षा, बालिका हत्या, विधवाओं की दयनीय स्थिति आदि ने भारतीय समाज को गुलामी की जंजीरों में जकड़कर विकास के रास्ते महिलाओं और पिछड़ों के लिए बंद कर रखे थे. इन सबके विरोध में पहली बार सघर्ष और विरोध की आवाज फुले दंपती ने ही भारत में प्रथम बार दृढ़ता, साहस, निर्भयता, निडरता और वीरता के साथ उठाकर भारतीय समाज के विखण्डित ढांचे को एकजुटता में बांधने के लिए पुरज़ोर कोशिश की थी. उनके ये प्रयास उस समय भले ही सफल नहीं हो पाये हो लेकिन उसके बाद स्वतंत्रता आंदोलन के प्रत्येक आंदोलनकारी और स्वतंत्रता सेनानी ने इन सब कुरीतियों और कुप्रथाओं के विरोध में संघर्ष किये और वो संघर्ष आज भी जारी है. सावित्रीबाई ने महिला शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में जो काम किया वो अनुकरणीय और बहुत अधिक प्रेरणादायी है.
सावित्रीबाई फुले का संक्षिप्त परिचय
पूरा नाम :- सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले
जन्मतिथि :- 3 जनवरी 1831 ई.
जन्मस्थान :- नयागाँव, जिला सतारा महाराष्ट्र
पिता :- खंडोजी नेवसे पाटिल
माता :- लक्ष्मीबाई
विवाह :- 9 वर्ष की आयु में 13 वर्ष के ज्योतिराव गोविन्दराव फुले के साथ1840 ई. में
संतान :- यशवंतराव ( दत्तक पुत्र)
प्रमुख संस्थाऐं :- 1848 ई. में पुणे में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना एवं 1858 ई. तक 18 नि:शुल्क विद्यालय स्थापित कर लिए गए, महिला सेवा मण्डल, किसानों, 1855 ई. में मजदूरों व प्रोढों के लिए नि:शुल्क रात्रिकालीन विद्यालय की स्थापना, अनाथ एवं विधवाओं के बच्चों के लिए 1867 ई. में ‘बाल हत्या प्रतिभानक गृह’, 1873 ई. में सत्यशोधक समाज की स्थापना आदि.
प्रमुख कार्यक्षेत्र :- समाज सुधार, शिक्षा, बालिका शिक्षा, किसान-मजदूरों एवं प्रोढों की शिक्षा, दलितों एवं पिछड़े वर्ग की शिक्षा, महिला एवं दलित उत्थान, समाज सेवा, विधवाओं की दशा में सुधार आदि.
‌जब सावित्रीबाई का विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हुआ उस समय वे पढ़ना लिखना बिल्कुल भी नहीं जानती थी. लेकिन उस समय जब महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करना भारतीय समाज में पाप माना जाता था ज्योतिबाफुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई को अंग्रेज़ी पद्धति के विद्यालय में शिक्षा दिलवाई और बाद में शिक्षिका के प्रशिक्षण की उपाधि भी दिलवाई. सावित्रीबाई भी ज्योतिबाफुले के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली महिला थी. जो संघर्ष भरे वातावरण में निडरता, निर्भयता और दृढ़ता के साथ समाज उत्थान एवं समाज सेवा के कार्य को नियमित रूप और निरंतरता के साथ अडिगता से करती रही.
‌उन्होनें अपने पति के साथ मिलकर बालिका शिक्षा, दलित और पिछड़ों की शिक्षा, किसान-मजदूरों व प्रोढों की शिक्षा, विधवाओं की दशा सुधारने के लिए, विधवाओं और विधवाओं के बच्चों के पालन पोषण एवं अच्छी तरह से देखभाल करने के लिए विधवाश्रम, अनाथालय स्थापित कर विधवाओं की स्थिति में सुधार लाने और लोगों की सोच को विधवाओं के प्रति बदलने में महत्वपूर्ण कार्य किया. बालिका शिक्षा के लिए तो उनके प्रयास और कार्य जगत प्रसिद्ध है. आज बालिकाऐं शिक्षा प्राप्त कर प्रत्येक क्षेत्रों में जो सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित कर रही है उसके लिए फुले दंपती के संघर्ष का योगदान है इससे शायद ही कोई असहमत हो.
‌जातिप्रथा, वर्ण व्यवस्था और अस्पृश्यता जैसे नासूर को समाप्त करने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए क्योंकि सावित्रीबाई जानती थी कि भारत में एकता, अखण्डता और राष्ट्रीयता की स्थापना के लिए इनका भारतीय समाज से समाप्त होना अति आवश्यक है.
‌1890 ई. में ज्योतिबाफुले की मृत्यु  के बाद भी सावित्रीबाई अपने दत्तक पुत्र के साथ मिलकर शिक्षा और समाज सेवा का कार्य करती रही. 1897 ई. में भारत में प्लेग जैसी बीमारी महामारी के रूप में फैली. प्लेग रोगियों की सेवा और सहायता निस्वार्थ भाव से सावित्रीबाई कर रही थी और उनका दत्तक पुत्र डाँक्टर यशवंतराव फ्री में उपचार कर रहा था. प्लेग रोगियों की सेवा करने के दौरान सावित्रीबाई भी प्लेग रोग से प्रभावित हो गई और इसी रोग  से 10 मार्च 1897 ई. को उनकी मृत्यु   हो गई.
‌ वर्तमान में सावित्रीबाई फुले के द्वारा समाज सुधारक के रूप में की गई पहल की ही देन है कि महिलाऐं और दलित-पिछड़े वर्ग के लोगों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय के वातावरण में सांस लेने का अवसर मिल रहा है. इस अवसर के द्वारा ही ये सभी धरती, आकाश और जल में अपनी कामयाबी की नई नई कहानियाँ लिख रहे हैं. इसके लिए ये सभी सावित्रीबाई फुले के ऋण को शायद ही विस्मृत कर पाये. आधुनिक भारतीय समाज में सावित्रीबाई प्रथम महिला समाज सुधारक और शिक्षिका थी, जिन्होंने उस समय भारतीय जनमानस को आंदोलित कर दिया जब कोई इसके बारे में सोच भी नहीं सकता था.
खेमराज आर्य
सहायक प्राध्यापक इतिहास
शासकीय आदर्श कन्या महाविद्यालय श्योपुर मध्यप्रदेश

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