*इंदौर:-बाबा यादव*
अब शराब की कीमत ठेकेदार खुद निर्धारित करेंगे, न कि आबकारी विभाग। अभी तक ये काम आबकारी विभाग के पास था। उसके एकछत्र राज के चलते ठेकेदारों को कई बार आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।
राज्य सरकार की शराब नीति के मुताबिक, ठेकेदार न्यूनतम बिक्री मूल्य (एसएसपी) और अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के बीच ही उत्पाद बेचने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन अधिक या कम प्राइज में सामग्री नहीं बेच सकते। इसके बाद भी कीमत में अंतर है। इससे ठेकेदारों के बीच प्राइज वार के चलते संघर्ष और तनाव भी बढ़ रहा है। नए आबकारी सहायक आयुक्त आलोक खरे ने हाल ही में शहर के सभी शराब ठेकेदारों को इस संबंध में समझाइश देते हुए कीमतों में समानता लाने को कहा। उन्होंने ठेकेदारों को आपसी समन्वय से कीमतों का निर्धारण पर जोर दिया। सूत्रों के अनुसार पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र में शराब की बोतलों में अंतर है। जिन ठेकेदारों की दुकान प्राइम लोकेशन पर है, वे अधिक मूल्य में बिक्री कर रहे हैं। वे एमआरपी से भी अधिक दाम में शराब बेचते हैं। इतना ही नहीं, ठेकेदार अवैध रुप से क्षेत्र से बाहर भी बिक्री कराते हैं, जिससे दूसरे ठेकेदार को नुकसान होता है। इसमें थोक से लेकर घरपहुंच शराब की डिलीवरी तक शामिल है। ऐसे में जिस लायसेंसी के क्षेत्र में अवैध रुप से बिक्री होती है, उसके लिए लायसेंस फीस निकल पाना भी मुश्किल हो जाता है।